Home > National-mudde

Blog / 05 Apr 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) लोकपाल : उम्मीदें और चुनौतियां (Lokpal: Expectations and Challenges)

image


(राष्ट्रीय मुद्दे) लोकपाल : उम्मीदें और चुनौतियां (Lokpal: Expectations and Challenges)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): विभूति नारायण राय (पूर्व डी.जी.पी, उत्तर प्रदेश), मधुकर उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

एक लंबे प्रयास और तमाम आंदोलनों के बाद 23 मार्च को भारत को इसका पहला लोकपाल मिल गया। राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत्त न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया है।

  • इसके अलावा लोकपाल के अन्य सदस्यों की भी नियुक्ति कर दी गई है। जिसमें चार न्यायिक और चार गैर-न्यायिक सदस्य शामिल हैं।
  • न्यायिक सदस्यों के तौर पर जस्टिस दिलीप बी. भोसले, जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी की नियुक्ति की गई है।
  • साथ ही, गैर-न्यायिक सदस्यों में अर्चना रामसुंदरम, दिनेश कुमार जैन, महेन्द्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम का नाम शामिल है।

लोकपाल क्या है?

लोकपाल का पद ऊँचे सरकारी पदों पर बैठे अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने और उस पर कार्यवाही करने के लिए बनाया गया है। इसका प्रावधान लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में किया गया है। आम बोलचाल में, इसे लोकपाल क़ानून भी कहते हैं।

विश्व में लोकपाल का क्या इतिहास रहा है?

भ्रष्टाचार प्रशासन की एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे निपटने के लिए तमाम देशों में समय-समय पर कई कदम उठाये गए हैं।

  • इसी के तहत, दुनिया में सबसे पहला लोकपाल साल 1809 में स्वीडन देश में नियुक्त किया गया था।
  • स्वीडन में इसे 'ओम्बुड्समैन' के नाम से जाना जाता है।
  • स्वीडन के बाद धीरे-धीरे ऑस्ट्रिया, डेनमार्क तथा अन्य स्केण्डीनेवियन देशों में भी ऑम्बुड्समैन की नियुक्तियां की गईं।
  • भारत से पहले, 135 से अधिक देशों में ‘ऑम्बुड्समैन’ की नियुक्ति की जा चुकी है।
  • इन तमाम देशों में ऑम्बुड्समैन को अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
  • ब्रिटेन, डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड में यह संस्था पार्लियामेंट्री कमिश्नर यानी संसदीय आयुक्त के नाम से जानी जाती है। रूस में इसे प्रोसिक्यूटर यानी वक्ता के नाम से जाना जाता है।

भारत में कहाँ से आया ‘लोकपाल’ शब्द?

ओम्बड्समैन को भारत में लोकपाल और लोकायुक्त कहा जाता है। यह नामकरण साल 1963 में भारत के मशहूर कानूनविद डॉ एलएम सिंघवी ने किया था। लोकपाल केंद्र में और लोकायुक्त राज्य में होता है। लोकपाल शब्द संस्कृत के शब्द 'लोक' यानी लोग और 'पाल' यानी संरक्षक से बना है।

भारत में लोकपाल का इतिहास

भारत में सबसे पहले केएम मुंशी ने बजट के दौरान संसद में लोकपाल के मुद्दे को उठाया था।

  • इसके बाद प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की 1966 की सिफारिश पर साल 1968 में लोकपाल विधेयक पहली बार संसद में पेश किया गया।
  • उस वक्त लोकपाल विधेयक में प्रधानमंत्री को भी रखा गया था। बाद में, कई बार प्रधानमंत्री को इसके दायरे से बाहर रखा गया और वापस लाया गया।
  • लोकपाल विधेयक 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005, 2008 और 2011 में पेश किया गया, लेकिन पारित नहीं हो सका।
  • इस तरह तमाम नाकाम कोशिशों के बाद 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा में और 18 दिसंबर 2013 को लोकसभा में भारत का लोकपाल बिल पारित हुआ।
  • दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने भी तत्काल बिल को मंजूरी प्रदान कर दी थी।

लोकपाल की चयन समिति

लोकपाल की नियुक्ति के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति होती है।

  • लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश या उनकी सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट का कोई एक जज और राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त किया गया एक सदस्य (जूरिस्ट) होता है।
  • इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी लोकपाल के नाम पर सहमति देने वाली समिति के सदस्य हैं।

2013 से अभी तक क्यों लटका हुआ था मामला?

बता दें कि लोकपाल नियुक्ति की सिलेक्ट कमिटी में नेता विपक्ष की भी भूमिका है। विपक्ष में बैठने वाले दलों में जिस दल के पास सर्वाधिक सीटें होती हैं उससे किसी सांसद को विपक्ष का नेता चुना जाता है, हालाँकि, यदि विपक्ष के किसी भी दल के पास कुल सीटों का 10% नहीं है तो ऐसी दशा में सदन में कोई विपक्ष का नेता नहीं हो सकता। नेता विपक्ष न होने के कारण लोकपाल की नियुक्ति का मामला भी अटका हुआ था।

बाद में, एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया था कि अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति इसलिए अवैध नहीं होगी, क्योंकि चयन समिति में कोई पद रिक्त है। सरकार ने नेता विपक्ष न होने की स्थिति में विपक्षी दल के नेता को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर शामिल करने की बात कही थी। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकपाल कमिटी की बैठक में हिस्सा लेने से इनकार करते हुए सरकार पर मनमानी का आरोप लगाया था।

लोकपाल की संरचना

लोकपाल क़ानून 2013 के मुताबिक़, केंद्र में लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त होंगे।

  • लोकपाल एक बहुसदस्यीय निकाय होगी, जिसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे।
  • इसमें आधे यानी 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य शामिल होंगे और 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति/जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होंगे।

लोकपाल की योग्यता

लोकपाल की पात्रता लोकपाल अधिनियम, 2013 के मुताबिक़ तय की गई है।

  • लोकपाल के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त होने वाले शख़्स को सुप्रीम कोर्ट का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या पूर्व सुप्रीम कोर्ट जस्टिस होना चाहिए।
  • ग़ैर-न्यायिक सदस्य होने की स्थिति में नियुक्ति के लिए भ्रष्टाचार रोधी, प्रशासन, सतर्कता, क़ानून और प्रबंधन से जुड़े क्षेत्रों का 25 सालों का अनुभव होना चाहिए।
  • खास बात ये है कि उनके पद से रिटायर्ड होने के बाद भी कुछ साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।

कौन नहीं हो सकता है लोकपाल?

अध्यक्ष पद पर कोई निर्वाचित प्रतिनिधि या कोई कारोबारी या पंचायत व नगर निगम के सदस्य की नियुक्ति नहीं हो सकती। इसके अलावा उम्मीदवार किसी ट्रस्ट या लाभ के पद पर भी नहीं होना चाहिए।

लोकपाल के कार्यकाल, वेतन और भत्ते

इस पद के लिए न्यूनतम आयु मानदंड 45 वर्ष है। चयन होने के बाद अध्यक्ष और सदस्य पांच साल के कार्यकाल या 70 साल की उम्र तक पद पर बने रह सकते हैं। लोकपाल अध्यक्ष का वेतन और भत्ते भारत के प्रधान न्यायाधीश के बराबर होंगे। सदस्यों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर वेतन और भत्ते मिलेंगे।

क्या अधिकार होंगे लोकपाल के?

कोई भी व्यक्ति लोकसेवकों के भ्रष्टाचार को लेकर लोकपाल से शिकायत कर सकेगा। शिकायत किस प्रकार से की जाएगी, यह लोकपाल तय करेगा और इसकी जानकारी दी जाएगी।

  • भ्रष्टाचार के मामले में लोकपाल खुद भी संज्ञान लेने में सक्षम होगा। जाँच में दोषी पाए गए अधिकारी के खिलाफ लोकपाल मुकदमा चलाने की अनुमति देगा।
  • लोकपाल को मुकदमा चलाने की अनुमति देने के अलावा मुक़दमे को बंद करने का भी अधिकार होगा।
  • लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे।
  • लोकपाल के पास केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार और अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार होगा।
  • इसके अलावा लोकपाल, कर्मचारियों को सेवा से हटाने, जुर्माना लगाने या उनकी संपत्ति जब्त कर लेने जैसी कार्यवाही कर सकता है।
  • संयुक्त सचिव स्तर एवं ऊपर के अधिकारियों के मामले में सरकार से अनुमति लेनी होगी।
  • विदेशी स्रोत से 10 लाख रुपए सालाना से अधिक का अनुदान पाने वाले सभी संगठन लोकपाल के दायरे में आएँगे।

क्या प्रधानमन्त्री भी लोकपाल के दायरे में आएँगे?

प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया गया है, लेकिन इसके लिए कुछ सुरक्षा उपाय भी किये गए हैं। अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ जाँच की शिकायत आती है तो इसके लिए अध्यक्ष की अगुवाई में लोकपाल के पूर्ण बेंच की एक बैठक की जाएगी। बैठक में, दो-तिहाई बहुमत से फैसला करने पर ही प्रधानमंत्री के खिलाफ जाँच की जाएगी।

यह कार्रवाई गोपनीय होगी और अगर शिकायत जाँच लायक नहीं पाई जाएगी तो उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। हालांकि वर्तमान प्रधानमंत्री और सेना लोकपाल के दायरे में नहीं है। इसलिए लोकपाल वर्तमान प्रधानमंत्री और सेना को छोड़कर किसी पर भी कार्रवाई कर सकता है।

कुछ सवाल भी उठाये जा रहे हैं लोकपाल पर

लोकपाल क़ानून की धारा 63 के मुताबिक़ प्रत्येक राज्य में क़ानून के लागू होने के एक साल के भीतर ही लोकायुक्त की स्थापना की जानी है। लेकिन अभी तक कई ऐसे राज्य हैं जहाँ लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की गई है। मिसाल के तौर पर, तमिलनाडु ने अभी तक केवल लोकायुक्त कानून ही बनाया है, लेकिन इसकी नियुक्ति नहीं की है।

  • इस क़ानून की धारा 24 में कहा गया है कि यदि लोकपाल द्वारा किसी भी भ्रष्टाचार का खुलासा किया जाता है, तो चार्जशीट दाखिल करते समय चार्जशीट की एक प्रति "सक्षम प्राधिकारी" को भी भेजी जाएगी। मान लें, अगर किसी मामले में प्रधानमंत्री को दोषी पाया जाता है तो इस दशा में 'सक्षम प्राधिकारी' लोकसभा को माना जाएगा। और लोकसभा को इस मामले की सूचना दी जाएगी, लेकिन लोकसभा को कुछ करना नहीं है। अब सवाल ये है कि यदि ऐसे "सक्षम प्राधिकारी" को पूरे मामले में कोई बड़ी भूमिका नहीं दी गयी है, तो उन्हें "सक्षम प्राधिकारी" बनाया ही क्यों गया है?
  • सबसे अहम् बात ये है कि ये क़ानून केवल ऐसे "लोक सेवकों" पर लागू होता है जो भारत संघ के दायरे में आते हैं, राज्यों के नहीं। ऐसे में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए इस क़ानून का दायरा बहुत सीमित रह जाता है।

निष्कर्ष

लोकपाल लागू हो जाने के बाद भ्रष्ट लोक सेवकों पर लगाम लगने की उम्मीद ज़रूर जगी है। लेकिन लोकपाल से जुड़े जो दूसरे पूरक विधेयक अभी तक लटके हुए हैं उन्हें भी क़ानूनी जामा पहनाया जाना ज़रूरी है।